
केलवा के पात पर उगे लन सुरुजमल झांके-झुके…..
साहित्य कहता है धान के पौधे में मुट्ठी भर उम्मीद पाया जाता है जो किसान के खून, पसीने को सोना में बदल देता है।
अपने दालान के छत पर चहड़ कर देखें तो लगेगा कि सभी ने अपने अपने खेत से धान की कटनी समाप्त कर ली है। कहीं धान ढोया जा रहा तो कहीं डेंगाया जा रहा है। जहाँ डेंगैनी हो गया वहाँ ऊसेरा जा रहा।
गाँव की महिलाओं को कोटोपैक्सी और हवाईद्वीप नहीं पता पर तसला में धान ऊसेरते हुए जब महिलाएँ चूल्हे में आँच भरती हैं तो लगता है ये चूल्हा ही भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ है। बाकी सब तो किताबी बातें।
नयका धान कुछ लेकर आये या नहीं अपने साथ छठ पर्व जरूर लेकर आता है। अब देखिए न दस दिन पहिले ही यूपी वाली मामी माय को फोन करके बोल रही थी कि- ए राजू के माय….खरना के परसादी कइसे बनतै, नयका चउर भेजवा दभो तबे न!
रजुआ भी तुरंत टिकट करवा लिया ऑनलाइन अब का है न टिकट स्टेशन पर दे नहीं रहे है न,
केलवा के पात पर उगे लन सुरुजमल झांके – झुके
के करेलू छठ बरतिया से झांके – झुके।
मामी झोला देखती हैं तो कहती हैं “हम त खली चउर कहलिये हल माय त चउर, गेंहू, सड़िया, चुड़ी सब भेजवा दलखिन”
भागदौड़ की दुनिया में जहाँ हम शुभ दीपावली और दशहरा भी कॉपी पेस्ट किया हुआ भेजते हैं। वहाँ छठ पूजा के लिए परसादी का सामाग्री ननद के यहाँ से भौजाई तक पहुँच जाना भी कम बात नहीं है।
इधर गाँव के छत धुलाने लगे हैं। अनिता भौजी गेंहू का बाल्टी खोल कर मुनिया के पापा से पूछ रही हैं कि “आज गेंहुआ धो के सूखे दे दिये जी? कि कहो हखो!” तब पता चलता है कि अठारह को तो नहाय- खाय है और उन्नीस को खरना। अब नै दभो त कब दभो रघु के माई।

छत पर गेंहू सूख रहा है। बाजार में मील धुला रहा है। कुछ देर में पिसा कर घर भी आ जाएगा। सब कुछ कितना पवित्र और मनमोहक सा दिख रहा है। कोई बाजार में ईख का ढेर पहुँचा रहा है तो कोई ईख खरीद कर घर ला रहा। कहीं कोई महिला सूप खरीद रही है, तो कहीं दो गोतनी आपस में बतियाते हुए पूछ रही है कि “ए बहिन ई नारियल ठीक हको कि ई ठीक हको” अजी दोनों त एक्के नियुत लगते है जी फिर एकसाथ मुस्कुरा पड़ते हैं।
कल को कद्दू भात है और कद्दू के दाम आसमान के पैर छू रहे हैं। कहीं पचास रुपया किलो तो कहीं साठ रुपये पीस। तभी दक्खिन टोला के परमेसर चाचा ने ये निर्णय लिया कि इस बार अपने खेत का सारा कद्दू परवैतिन सब के घर फ्री में पहुँचाएंगे।
ठेला पर लदा कर कद्दू परवैतिन के घरे घर पहुँच रहा है। बाजार का कीमत भले अर्थव्यवस्था को संभालेगी। पर छठ पर्व और उसकी मनोहरता की अर्थव्यवस्था संभालने के लिए हम गाँव के लोग ही बाजार पर भारी हैं।
अब हाल ये कि कद्दू दस रुपया किलो बिक रहा है। ग्रामवासी सड़को को साफ करने में लगे हुए हैं। जब तक छठ पूजा है तब तक स्वच्छता के मामले में हम सब इंदौर से भी सौ मील आगे रहेंगे।
षष्ठी के दिन साँझ अर्घ्य है फिर अगले दिन भोर अर्ध्य। इच्छुक लोग अपने पड़ोसियों के साथ घाट पर जाएं। जो नहीं जा रहें वो परवैतिन के वापस लौटने का इंतज़ार करें। उनके पैर को पानी से धोएँ, प्रणाम करें। जो जा रहे हैं वो माँ की साड़ी को नदी में धोकर अपना मुँह पोछें और छठ मैया से हिम्मत माँगे। इस साल ने वैसे भी बहुत मौतें दी हैं।
जय छठी मईया। 🙏