सेवा में,
प्रभ्न्धक महोदय,
आपसे नम्र निवेदन है की हमको 4दिन की छुट्टी चाहिये।

कैलेंडर का वो त्यौहार, जो हमलोग सबसे पहले देखता है, वो महापर्व छठ है। मतलब कि महापर्व छठ आ रहा है।
हमारे यहाँ के बच्चे जब से होश संभालते हैं। भले ही ककहरा ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’ याद करें या ना करें लेकिन छठ का गीत उनके रोम-रोम में बजता है। स्पीकर बंद होने के बाद भी हमारे दिल-दिमाग में छठ के गीत गुंजते रहते हैं। आप लड्डू, पेड़ा, बरफी को प्रसाद समझते हैं लेकिन हमारा छठ का महाप्रसाद ठेकुआ है और गन्ना है।
लड़के भले ही सालभर निकम्मा और बेकार की उपाधि के साथ बाबूजी का गाली सुनते हों लेकिन छठ एक ऐसा पर्व है, जिसमें सब दिल लगाकर काम करते हैं। चाहे रोड साफ करना हो, घाट बांधना हो, लाइट का इंतजाम करना हो, माताओं-बहनों को चाय पिलाना हो या प्रसाद बांटना हो, सारे कामों की ज़िम्मेदारी अपने उपर ले लेते हैं। हमारे यहां तो बच्चों को बड़ा भी उसी साल से माना जाता है, जिस साल वो पगड़ी बांधकर छठ का दऊरा घाटे पहुंचाता है।

छठपर्व आ रहा है, मुझे अपने गाँव, शहर जाना है। छुट्टी दे दीजिए। बस चार दिन की ही। माई (माँ) छठ करती है, पिछली बार नहीं थे छठ में तो माई रो पड़ी थी। इस बार जाना है छठ में। बहन भी आ रही है, छोटकी बुआ भी। सब लोग आ रहे हैं। हम भी जाएंगे। टिकट भी कटा लिए हैं।
अब हम आपको कैसे बताएं छठ क्या है, हमारे लिए। हम नहीं बता सकते और ना आप समझ सकते हैं। 360 दिन तो आपका ही है, बस ये चार दिन जो मेरा है, हमको दे दीजिए। चलिए मेरे मेरा गाँव आपको दिखाएंगे। लोक आस्था का महापर्व कैसे मनाते हैं हम सब। रातभर मुस्लिम लोग सड़क को धो देते हैं, जिस रास्ता से छठव्रती लोग गुजरती हैं, क्या हिन्दू, क्या मुस्लिम, क्या सिख, क्या ईसाई छठव्रती को सभी लोग उसी आदर से प्रणाम करते हैं।
सांझ अर्घ के समय गंगा माईया के किनारे सारे लोग इस पार से उस पार, क्या कलक्टर, क्या चपरासी, क्या डॉक्टर, क्या कंपाउंडर, क्या नेता, क्या जनता, सब के सब उस डूबते और उगते सूरज के लिए बराबर। आप ऐसा नज़ारा जीवन में नहीं देखे होंगे।
यह कहानी सिर्फ मेरी ही नहीं है, यह उन सभी लोगों की कहानी है, जो अपने प्रदेश यूपी और बिहार से, अपने घर (शहर/गाँव) से मीलों दूर जाकर बसे हैं। चाहे किसी बड़ी कंपनी में काम करता हो, चाहे एक इंजीनियर हो, चाहे डॉक्टर हो, चाहे एक मज़दूर हो या अन्य कोई भी हो, दो जून की रोटी के लिए उनको घर से मीलों दूर काम करना पड़ता है।
उनकी इच्छा होती है कोई भी पर्व में घर जाएं ना जाएं लेकिन छठ पर्व में अपना अपना शहर-अपना गाँव जाएं और अपने पूरे परिवार के साथ बड़ी उत्साह से लोक महापर्व छठ मनाएं।