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Home नेता नगरी

जवाहर लाल नेहरू की 131वीं जयंती पर उनकी ज़िंदगी से जुड़े कुछ भ्रम !

Ankit pandey by Ankit pandey
November 14, 2020
in नेता नगरी
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अभी हाल ही में बिहार चुनाव ख़त्म हुआ। नेहरु का ज़िक्र बिहार चुनाव में नहीं हुआ, पर जैसे ही लोकशभा का चुनाव हुआ था 2019 में नेहरु का ही नाम सबसे ज़्यादा लिया गया।
पंडित जवाहरलाल नेहरू, एक ऐसा नाम जिसने सब देखा है। लोगों के अपार प्रेम से लेकर अपने सहयोगियों की कटु आलोचना तक उन्होंने सबका सामना किया है लेकिन इस लेख को लिखने की आवश्यकता क्या थी? क्या बदल गया?
मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं यह लेख नेहरू के महिमा मंडन के लिए नहीं लिख रहा हूं, बल्कि जो मिथक बताए गए हैं, उन्हें साफ करने के लिए लिख रहा हूं। मैं लिख रहा हूं एक नाम की खातिर, वह नाम जो एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत की विरासत है।
क्या नेहरू और गाँधी भारत के विभाजन के लिए ज़िम्मेदार हैं?
शुरू करते हैं उन लोगों से जो कहते हैं कि नेहरू और गाँधी भारत के विभाजन के लिए ज़िम्मेदार हैं, उन्हें ‘डायरेक्ट एक्शन डे‘ के बारे में पढ़ना चाहिए जो जिन्ना के निर्देश पर मुस्लिम लीग द्वारा लागू किया गया था। जी हां, वही मुस्लिम लीग जिसने हिंदू महासभा के समर्थन से सिंध, पश्चिमोत्तर सीमांत और बंगाल में सरकारें बनाईं।
यह भी एक रोचक तथ्य है कि इन सरकारों का गठन तब हुआ था, जब वहां की तत्कालीन काँग्रेसी सरकारों ने इस्तीफा दे दिया था। इस बात का विरोध करते हुए कि ब्रिटेन ने भारतीय नागरिकों की इजाज़त के बिना द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को एक सहयोगी बना दिया था।
इन सबके बीच महासभा, ब्रिटिश सेना के लिए भारतीय नागरिकों की भर्ती कर रही थी।
हमें महासभा के भारत छोड़ो आंदोलन के बहिष्कार करने की भी बात करनी चाहिए। सावरकर ने अपने शिष्यों को उनके पदों पर बने रहने के बारे में क्या लिखा, इस बारे में भी पढ़ने की ज़रूरत है।
मैं किसी भी विचारधारा या व्यक्ति विशेष के बारे में गलत नहीं बोलना चाहता। हर किसी का अतीत संघर्षों और उपलब्धियों से भरा होता है। मैं केवल तथ्यों की बात कर रहा हूं। 1963 का गणतंत्र दिवस भी दक्षिणपंथियों के लिए निश्चित ही गौरवपूर्ण क्षण रहा होगा, जब आरएसएस को खुद नेहरू द्वारा परेड में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था।
आज तक स्वयंसेवक गर्व के साथ उस पल को याद करते हैं। इन सब बातों के बावजूद आप उस आदमी की छवि को खराब करने की कोशिश करते हैं, जिसने तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद आपको स्वीकार किया और राष्ट्र के लिए आपकी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए सम्मानित भी किया।
नेहरू और शेख अबदुल्ला की लोकप्रियता
कश्मीर मुद्दे को यूएन में ले जाना भारत की ओर से एक बुरा कदम था या नहीं, इस पर बहस की जा सकती है मगर इस तथ्य को भी जान लेना बेहद ज़रूरी है कि यह नेहरू और शेख अबदुल्ला की लोकप्रियता का ही डर था, जिसकी वजह से पाकिस्तान कभी पीओके और गिलगिट-बालटिस्तान से सेना हटवाकर जनमत-संग्रह की इजाज़त नहीं दे सका, जो कि यूएन संधि की पहली शर्त थी।
ज़रा सोचिए 36 करोड़ का देश जिसने अभी-अभी आज़ादी पाई है, अभी सही से चलना भी नहीं सीख पाया है उसे 14 महीने तक युद्ध की आग में झोंके रखना आखिर कहां की समझदारी है।
पटेल का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है
जब कश्मीर की बात हो ही रही है, तब पटेल की भी होनी चाहिए। ऐसे में हमें इस बात का पता होना चाहिए कि अनुच्छेद 370 जिस वक्त पास हुआ था, नेहरू अमेरिका के दौरे पर थे और इसे पास करवाने की ज़िम्मेदारी पटेल की थी और उन्होंने इसे सफलतापूर्वक निभाया भी।
मैं पटेल पर दोषारोपण नहीं कर रहा हूं, बस यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि उस वक्त निर्णय आपसी बहस और सर्वसम्मति से लिए जाते थे। लोगों को उन पत्रों को पढ़ना चाहिए, जो पटेल और नेहरू ने एक दूसरे को लिखे थे। उन्हें आईएनए की नेहरू और गाँधी ब्रिगेड के बारे में भी पता होना चाहिए।
हां, वैचारिक मतभेद थे, जो समय-समय पर खुलकर सामने भी आते थे परंतु इससे उनके आपसी रिश्तों में कभी कोई खटास नहीं आई। यह बात उनके पत्राचार से स्वतः ज्ञात हो जाती है।
नेहरू के ऊपर कीचड़ उछालने वालों को एक बात समझ लेनी चाहिए कि इससे देश की समस्याओं का कोई समाधान होने वाला है नहीं। बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा का सुचारू रूप से इंतज़ाम कीजिए, चुनाव जीतने के लिए ऐसे सस्ते हथकंडों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
लिखना बहुत कुछ चाहता हूं मगर ज़्यादा नहीं लिख पाऊंगा। एक बात ज़रूर लिख सकता हूं कि नेहरू गलत थे या सही, यह बहस का मुद्दा हो सकता है परंतु उन्हें अपराधी मानकर अपनी नाकामियों का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ना किसी भी सूरत में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है। एक बात और, पंडित जी के दादा गंगाधर नेहरू थे, गयासुद्दीन गाज़ी नहीं।
नेहरु की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर ख़ूब वाइरल हुआ।

social media phtot

तस्वीर में नेहरु की गाल पर चूम रही महिला कोई ब्रिटिश महिला नहीं बल्कि नेहरु की भांजी नयनतारा सहगल जी है। पर हमारे देश के तथाकथित देश भक्त लोग नेहरु को आयश बात कर एक मामा और भाँजी के प्रेम को दूषित किया। आशा करता हु 2024 के चुनाव में नेहरु को ना बेचा जाये। बाक़ी चाचा नेहरु बच्चों के भी नेता है, अपने बच्चों को नेहरु के बारे सब कुछ बतायें। WhatsApp University वाले ज्ञान से बचिये।

जय हिन्द।

Ankit pandey
Author: Ankit pandey

Tags: JawaharlalNehru #ChildrensDay
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