आजकल अगर कोई भी हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बात करेगा, उसे लपेट लिया जाएगा. जेल भेज दिया जाएगा. ऐसा प्रचार किया जाएगा कि ये तो आतंकवादी है. और अगर उसके नाम के आगे “खान” या “मोहम्मद” या “अली” या “अहमद” भी जुड़ा होगा, तब तो खतरा और भी ज़्यादा है.फ्रांस की घटना पर भारत के मुसलमानों को खूब ज्ञान दिया गया. बांग्लादेश की हिंसा का जिम्मेदार पूरी मुस्लिम कौम को बता दिया गया. कहीं-न-कहीं सबका इस्लामोफोबिया सामने आ गया पिछले कुछ दिनों में.जो भी प्रेम फैलाता है, उसकी राह मामूली लोगों के बनिस्बत मुश्किल होती है. फैसल खान का नाम आप सब सुन रहे होंगे. नाम सुनकर सबसे पहले आपके दिमाग में आया होगा कि अच्छा ये तो कोई मुसलमान आदमी है.खुदाई खिदमतगार को ज़िंदा कर दिया है फैसल खान ने. हिंदुओं और मुसलमानों को साथ लाने की कोशिश को दोहरा रहे हैं फैसल खान. लेकिन हम उनको क्या दे रहे हैं? जेल? गाली? हम सब ने कुछ नाम सीख लिए हैं – मुल्ला, जिहादी, कटुआ. और गाहे-बगाहे ये नाम हम किसी न किसी मुसलमान को तोहफ़े में दे देते हैं.और दुःख तब होता है जब हिंदुत्ववादी ही नहीं,तथाकथित लिबरल्स और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग भी अपनी ऑडियंस को अट्रैक्ट करने के लिए इन नामों का इस्तेमाल करते हुए दिखते हैं.फैसल खान जैसे लोग जो मंदिर के पुजारी से टीका भी लगवाते हैं, कृष्ण जन्माष्टमी भी मनाते हैं, और इजाज़त मिलने पर मंदिर में नमाज़ भी पढ़ लेते हैं. हमें ऐसे ही लोगों की ज़रूरत है. लेकिन हम तो उन्हें जेल में डाल रहे हैं.सुकरात को जहर देकर मार दिया गया, उमर मुख़्तार को सरेआम फांसी हो गई. प्रगतिशीलता, स्वाधीनता और भाईचारे की बात करने वाले लोगों को अक्सर गाली खानी पड़ती है. कभी-कभी तो गोली भी. गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बात की. नतीजा हुआ कि उन्हें गोली मार दी गई. अगर आज़ादी की लड़ाई आज हो रही होती तो सम्भव है कि गांधी, नेहरू, मौलाना आज़ाद, खान अब्दुल गफ्फार खान को हम हिंदुस्तानी लोग ही गरिया कर मार डालते. अंग्रेजों को कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं होती.फैसल खान जी के बारे में मैंने बहुत पहले से सुन रखा है. मुझे हमेशा उनसे स्नेह भी मिलता रहा है.इस दौर में जब हम फेसबुक पर ज्ञान बघारकर धर्मनिरपेक्ष बन जाते हैं. ऐसे दौर में फैसल खान जैसे लोगों का होना बहुत ज़रूरी है जिनके खून में धर्मनिरपेक्षता है.कट्टरपंथी मत बनिए, धर्मांध मत बनिए. गांधी, नेहरू, मौलाना आज़ाद से सीखिए. सीमांत गांधी से सीखिए. फैसल खान से सीखिए. और प्रेम फैलाइये. जेल से डरिये मत. फेसबुक पर चार गालियाँ मिलें तो घबराइए मत. लड़ते रहिये. एक दिन प्रेम जीतेगा. मोहब्बत जीतेगी.Faisal Khan की रिहाई हो.भाईचारा ज़िंदाबाद!