पटना. बिहार चुनाव को लेकर पांच बातें हैं बिल्कुल स्पष्ट हैं. पहला यह कि इस बार महागठबंधन (Mahagathbandhan) और एनडीए (NDA) के बीच ही सीधा मुकाबला है. दूसरा यह कि पहले चरण के चुनाव के पहले ही बीजेपी और सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) दोनों को इस बात का एहसास हो गया था कि चुनावी जमीन पर रोजगार एक बड़ा मुद्दा होने वाला है. इसको लेकर सीएम नीतीश कुमार के सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी काम कर रहा है. तीसरा यह कि तेजस्वी यादव की मुखरता कई मुद्दों पर सीएम नीतीश के लिए भारी पड़ रही है. चौथा ये कि बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट के नारे के साथ सीएम नीतीश पर हमलावर चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने पहले फेज में एनडीए को काफी नुकसान पहुंचाया है. पांचवां यह कि आने वाला दो चरण का मुकाबला पहले फेज की तरह ही बेहद टफ रहने वाला है.
जाहिर है इन बातों के स्पष्ट होने के साथ ही बिहार की राजनीति में कुछ नए चेंज देखने को मिलने शुरू हो गए हैं. पहला तो यह कि तेजस्वी यादव का हौसला बुलंद है और आगे वह तेज हमले करने वाले हैं. चिराग पासवान पहले चरण की वोटिंग के मुताबिक काफी हद तक वोटकटवा की भूमिका में दिख रहे हैं. वहीं, सीएम नीतीश कुमार को अब पीएम मोदी के चेहरे के बूते ही बिहार चुनाव की वैतरणी पार करने की उम्मीद दिख रही है. बीते 28 अक्टूबर को जब पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने दरभंगा, मुजफ्फरपुर और पटना में चुनावी रैलियों को संबोधित किया तो यह बात साबित भी होती हुई लगी.
सीएम नीतीश को है इस बात का एहसास
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जब पहले दो चरण के चुनाव के दौरान बिहार के सीएम नीतीश कुमार अपने अधिकतर भाषणों में खुद के किए कार्यों को ही गिनाते थे. इसके बाद के तीन चरणों में सीएम नीतीश पीएम नरेन्द्र मोदी के नाम पर वोटिंग की अपील करने लगे. दरअसल बीच चुनाव में ही उन्हें अपनी रणनीति बदलनी पड़ी थी क्योंकि उन्हें पता चल गया था कि लोग पीएम मोदी को अधिक पसंद करते हैं.
मोदी फैक्टर को भुनाने में जुटे एनडीए के नेता
अब जब कई एजेंसियों के सर्वे में सीएम नीतीश की लोकप्रियता में कमी की बात निकल कर आई है तो जाहिर है एनडीए की ओर से रणनीति चेंज करने की कवायद शुरू हो गई है. नीतीश सरकार के 15 वर्षों के कार्यकाल के बाद एंटी-इनकंबेंसी की खबरें भी सुर्खियां बन रही हैं. ऐसे में एनडीए के चुनावी रणनीतिकार अब मोदी फैक्टर को आगे करने की जुगत में लगे हैं.
पीएम मोदी के निशाने पर लालू-राबड़ी का जंगलराज
इस बात के संकेत 28 अक्टूबर की पीएम मोदी की रैलियों में भी लगने लगा क्योंकि उन्होंने अपने सभी संबोधनों में केंद्र सरकार की उपलब्धियों को आगे रखा. यही नहीं न तो उन्होंने नीतीश कुमार का जिक्र किया और न ही चिराग पासवान के बारे में ही कुछ बात कही. सिर्फ लालू-राबड़ी शासनकाल के जंगलराज के बारे में कई बातें कहीं.
नीतीश बोले- बिहार को विकसित राज्य बनाएंगे पीएम मोदी
इसी रणनीति के तहत सीएम नीतीश भी खुद को फ्रंट से अब पीछे करते हुए नजर आए और पीएम मोदी को आगे करने की रणनीति अपना ली. इस बात को पटना में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि एनडीए की सत्ता आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार को विकसित राज्य बनाएंगे.
क्यों अचानक शिफ्ट होने को मजबूर हुए सीएम नीतीश कुमार?
नीतीश कुमार ने कहा कि राज्य में सड़कों, पुलों और अस्पतालों की परियोजना के लिए किए गए पीएम मोदी के काम को बिहार की जनता कैसे भूल सकती है. नीतीश कुमार ने अपने भाषण में मोदी की प्रशंसा करते हुए पटना मेट्रो परियोजना, स्मार्ट सिटी योजना और उज्ज्वला योजना के बारे में भी बताया. जाहिर है यह नीतीश की अपनी छवि और आचार-व्यवहार से थोड़ा हटकर है. आखिर ये शिफ्ट क्यों हुआ है?
नीतीश कुमार को भी जमीनी हालात का लग गया अंदाजा
वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का मानना है कि दरअसल सीएम नीतीश कुमार बेहद गूढ़ राजनीतिज्ञ होने के साथ ही मंझे हुए रणनीतिकार भी हैं. उन्होंने जमीन की परिस्थितियों को जल्दी ही भांप लिया. दरअसल वे यह समझ गए कि प्रदेश की जनता का मूड अभी पीएम मोदी को लेकर पॉजिटिव है. ऐसे में क्यों न उसे ही तवज्जो दी जाए. ऐसे भी बिहार चुनाव में सामाजिक समीकरण के साथ ही मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं से हालात कुछ-कुछ चुनावी जमीन पर भी दिख रहे हैं.
तो तेजस्वी भी पीएम मोदी से डायरेक्ट फाइट नहीं चाहते हैं!
रवि उपाध्याय कहते हैं कि इस बात का एहसास सिर्फ नीतीश को ही नहीं है बल्कि तेजस्वी यादव को भी है. यही वजह है कि वह ‘जंगलराज के युवराज’ कहे जाने पर भी तेजस्वी ने सधी प्रतिक्रिया दी और कहा कि वह पीएम हैं इसलिए कुछ भी कह सकते हैं. दरअसल तेजस्वी को यह पता है कि लड़ाई अगर नीतीश को आगे कर लड़ी गई तो चांस बेहतर है, लेकिन अगर पीएम मोदी सामने आ गए तो फिर खेल बिगड़ भी सकता है.