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इन दिनों ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी की चौतरफ़ा निंदा हो रही है.
दरअसल असदुद्दीन ओवैसी ने दहशतग़र्दी के इल्ज़ाम में गिरफ्तार किए गए हैदराबाद के पांच मुस्लिम युवकों को कानूनी मदद मुहैया कराने की बात कही थी.
आलोचकों का तर्क है कि इस तरह की मदद से चरमपंथ को प्रोत्साहन मिलेगा.
लेकिन विरोध अधिकतर उन राजनीतिक पार्टियों ने किया है जिन्हें लगता है कि सियासत पर सियासत हो रही है.
ओवैसी का बयान एक ऐसे समय में आया है जब ढाका पर हुए चरमपंथी हमले के बाद लोग भावुक हैं.
उनका बयान राजनीतिक फायदा हासिल करने की एक कोशिश हो सकती है लेकिन देश में चरमपंथी मुक़दमों में फंसे लोगों को क़ानूनी मदद पहुंचना कोई नई बात नहीं है.
जमीयतुल उलेमाए हिन्द ने ऐसे दर्जनों मुसलमानों की अदालत में पैरवी की है जिन्होंने चरमपंथ के इल्ज़ाम में कई साल जेल में गुज़ारे. इसके लिए मुस्लिम समुदाय का ज़कात का पैसा इस्तेमाल हुआ है.
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पिछले महीने इसी संस्था के कानूनी सेल के गुलज़ार आज़मी ने बीबीसी से कहा था- ‘हम ऐसे ही मुस्लिम युवाओं का मुक़दमे लड़ने को तैयार होते हैं जिनके खिलाफ झूठे मुक़दमे लगाए जाने का शक होता है.’
गुलज़ार आज़मी के अनुसार पिछले दो सालों में अदालत ने दर्जनों मुस्लिम युवको के खिलाफ़ इल्ज़ाम खारिज किया है और उन्हें इज़्ज़त के साथ रिहा किया गया है. इनमें मालेगांव बम धमाकों के अभियुक्त भी शामिल थे.
अभी हाल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश यात्रा के दौरान 2013 दंगों के कुछ अभियुक्तों ने मुझे जानकारी दी कि भारतीय जनता पार्टी ने उनकी जमानत कराई थी.
शायद ओवैसी भी यही कहने की कोशिश कर रहे हैं कि हाल में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने हैदराबाद में जिन पांच मुस्लिम युवाओं को तथाकथित इस्लामिक स्टेट का मॉड्यूल बता कर गिरफ्तार किया था वो बेक़सूर हो सकते हैं.
ओवैसी खुद क़ानून के जानकार हैं और सालों से सांसद हैं. वो ऐसे लोगों की पैरवी करने की ग़लती नहीं करेंगे जिन पर चरमपंथी होने का उन्हें भी शक हो.
दूसरी तरफ इस सिलसिले में एनआईए या स्थानीय पुलिस का रिकॉर्ड बहुत सराहनीय नहीं रहा है. सुरक्षा एजेंसियों ने दर्जनों मुस्लिम युवाओं को चरमपंथी बता कर उन्हें जेल भेजा है.
लेकिन अदालत ने उनके दावों और तर्को को नहीं माना और अभियुक्तों को रिहा किया है. लेकिन जब तक इन मुस्लिम युवाओं की बेगुनाही अदालत में साबित होती है तब तक उनकी जवानी खत्म होने के कगार पर होती है.
हाल ही में हैदराबाद में गिरफ्तार किए गए मुसलमान युवा बेगुनाह हैं, या नहीं, इसका फैसला अदालत में होगा. ओवैसी को विश्वास है कि गिरफ्तार किए गए युवा बेगुनाह हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह कुछ अन्य लोग उन्हें दोषी मान रहे हैं.
ओवैसी का सवाल है कि यदि वे सियासत से अलग हो कर, उनकी पैरवी करना चाहते हैं तो इससे चरमपंथ को बढ़ावा कैसे मिलेगा.
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चरमपंथ को बढ़ावा देने वाले तर्क में एक बड़ी समस्या है.
अभी तो पकड़े गए युवकों पर इस्लामिक स्टेट का एक मॉड्यूल होने का केवल इल्ज़ाम है. उनके खिलाफ अभी तक चार्ज शीट भी दायर नहीं की गई है.
अगर इस मुद्दे को राजनीति से अलग रखा जाए तो ओवैसी ने किसी क़ानून का उलंघन नहीं किया है.